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अमेरिकी नीति से पाक विचलित- डॉ. आशीष शुक्ल

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बीते १८ दिसंबर को अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति घोषित करते हुए स्पष्ट रूप से यह रेखांकित किया कि पाकिस्तान आधारित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी और लड़ाके (मिलिटैन्ट) अभी भी उसके लिए खतरा बने हुए हैं तथा वह (अमेरिका) भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष की संभावनाओं, जो नाभिकीय (न्यूक्लियर) भी हो सकता है, को लेकर चिंतित है| इस नई रणनीति में दक्षिण एशिया में अमेरिकी हितों को न केवल चिन्हित किया गया है, बल्कि उसे हासिल करने के लिए उठाए जाने वाले क़दमों पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला गया है| इस रणनीति के उद्देश्यों में प्रमुख रूप से अमेरिका और उसके मित्र देशों की सुरक्षा को  प्रभावित करने वाले आतंकी खतरों का मुकाबला करना, सीमापार आतंकवाद से उपजे सैन्य और नाभिकीय संघर्ष की संभावनाओं को समाप्त करना, तथा नाभिकीय शस्त्रों और तकनीक को आतंकवादियों के हाथ में पहुँचने से रोकना शामिल है| इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए निर्दिष्ट प्राथमिकताओं के केंद्र में तीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिंदु हैं| सर्वप्रथम अमेरिका एक ओर तो भारत के साथ अपने रणनीतिक सहयोग को और अधिक बढ़ाएगा, तथा दूसरी तरफ हिंदमहासागर एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में उसके नेत्रित्व का समर्थन करेगा| इसके अतिरिक्त वह पाकिस्तान पर आतंकवाद के विरूद्ध छेड़े गए युद्ध में तेजी लाने के लिए दबाव बनाएगा और साथ ही उसे यह प्रदर्शित करने लिए उत्तेजित करेगा की वह (पाकिस्तान) अपने नाभिकीय हथियारों का एक जवाबदेह संरक्षक/प्रबंधक है| 

कुल ६८ पेज की इस प्रकाशित नीति में बिना किसी लाग-लपेट के यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है कि पाकिस्तान आधारित आतंकवादी समूह अभी भी अमेरिका और उसके मित्र देशों की सुरक्षा के लिए खतरा हैं तथा पाकिस्तान द्वारा इस परिप्रेक्ष्य में अपनाई गयी नीति दक्षिण एशिया की शांति और स्थायित्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है| इस नीति के प्रकाशन के साथ ही पाकिस्तानी सत्ता के केन्द्रीय इदारों में खलबली मच जाना स्वाभाविक था| पाकिस्तानी सेना के आधिकारिक प्रवक्ता और आई.एस.पी.आर. के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने एक पाकिस्तानी टॉक शो “कैपिटल टाक” में कहा कि पाकिस्तान ने अपने ऊपर थोपे गए आतंकवाद-विरोधी युद्ध को अपने देशहित के आलोक में लड़ा है तथा आगे भी जो कुछ भी जरूरी होगा वह करेंगे| उन्होंने यह भी कहा की पाकिस्तान अमेरिकी पैसे के लिए यह लड़ाई नहीं लड़ रहा है और वह अमेरिका से केवल इतना चाहता है कि वह (अमेरिका) पाकिस्तानी योगदान और त्याग को स्वीकार तो करे| भारत को बढ़ावा देने वाली नीति के विरोध में बोलते हुए उन्हें यह भी कहा कि अमेरिका द्वारा भारत के साथ किए गए किसी निर्णय को, जो हमारी राष्ट्रीय नीति के अनुरूप नहीं होगा, पाकिस्तान स्वीकार नहीं करेगा|

विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अमेरिका द्वारा पाकिस्तान पर लगाए गए आरोप निराधार और जमीनी हकीकत को झुठलाने वाले हैं तथा उसके (पाकिस्तान) द्वारा आतंकवाद-विरोधी अभियान में दी गयी कुर्बानियों और क्षेत्र में शांति और स्थायित्व को बढ़ाने के लिए किए गए प्रयासों को महत्वहीन बनाने वाले हैं| इसके साथ ही इस आधिकारिक वक्तव्य में पाकिस्तान को राज्य प्रायोजित आतंकवाद का शिकार बताया गया है तथा अप्रत्यक्ष रूप से भारत और अफगानिस्तान इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है| अमेरिका द्वारा घोषित इस हालिया नीति ने पाकिस्तानी बौखलाहट को इस हद तक बढ़ा दिया है कि उसने अमेरिका पर भारत को बिना किसी औचित्य के एक क्षेत्रीय ताकत के रूप में आगे बढ़ाने का आरोप मढ़ दिया|

पाकिस्तान द्वारा अमेरिकी निर्णय और किसी घोषित नीति के विरूद्ध इस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया के कई कारण हैं| अमेरिका के इस निर्णय को पाकिस्तान की विदेश नीति, जो भारत के इर्द-गिर्द नाचती रहती है, के लिए एक करारा झटका माना जा रहा है| अमेरिका द्वारा भारत के साथ रणनीतिक सहयोग बढ़ाने और उसे हिंदमहासागर और सीमावर्ती क्षेत्र में एक निर्विवाद ताकत के रूप में उभरने में सहयोग करने के फैसले ने पाकिस्तान को काफी विचलित कर दिया है| इस हालिया घटनाक्रम में अमेरिका ने न केवल पाकिस्तान में नाभिकीय हथियारों की सुरक्षा पर सवाल उठाया है, बल्कि भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ सीमापार से जारी आतंकवाद पर खुले तौर पर बोलकर पाकिस्तान को यह सन्देश भी देने की कोशिश की है की आतंकवाद के खिलाफ अपनाई गयी उसकी ढुलमुल नीति को अब और अधिक सहन नहीं किया जाएगा| यह सभी बातें पाकिस्तान और उसकी सेना, जो उस देश में वास्तविक कर्ताधर्ता है, की आतंकवाद को विदेश नीति के एक रणनीतिक अस्त्र के रूप में प्रयोग करने की अघोषित नीति के बिल्कुल उलट हैं| पाकिस्तानी विश्लेषकों और नीतिनिर्माताओं को इस बात का पूरा अंदाजा है कि इस नीति के भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं|

भारत के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे समय में उसकी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए| ऐतिहासिक अनुभव और वर्तमान समय में बदलती हुई भू-राजनीतिक स्थिति में भारत को अपनी सामान्य विदेश नीति और दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों के प्रति नीति (नेबरहुड पॉलिसी) में कुछ ऐसे बदलाव लाने की जरूरत है जिससे कि एक ओर तो उसकी रणनीतिक स्वायत्तता (स्ट्रेटेजिक ऑटोनामी), जो भारतीय विदेश नीति की आधारशिला है, बरकरार रहे, और दूसरी ओर उसके तात्कालिक और दूरगामी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति में सहयोग करे|

(साभार: प्रभात खबर)

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