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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने सोमवार की शाम को फोर्ट मायर सैन्य ठिकाने (मिलिट्री बेस) से अमेरिकी लोगों, विशेषकर सैनिकों, को संबोधित करते हुए अपनी दक्षिण एशिया नीति में आमूलचूल परिवर्तन लाने की घोषणा की| उनके इस महत्वपूर्व संबोधन के केंद्र में अफगानिस्तान में व्याप्त अस्थिरता, विभिन्न आतंकी संगठनों द्वारा लगातार जारी हिंसक गतिविधियाँ तथा अमेरिका द्वारा नामित आतंकवादी संगठनो को पाकिस्तान में मिल रही पनाह एवं अमेरिकी सामरिक हितों से सम्बंधित मुद्दे प्रमुख थे| उल्लेखनीय है कि अफ़ग़ानिस्तान में अक्टूबर २००१ में आरम्भ हुआ अमेरिकी हस्तक्षेप अब अपने सत्रहवें साल में प्रवेश करने को है, लेकिन इसके बावजूद विश्व की एक मात्र महाशक्ति अपने घोषित लक्ष्यों की प्राप्ति में केवल आंशिक रूप से ही सफल हो सकी है| संभवतः इन असफलताओं से सबक लेते हुए राष्ट्रपति ट्रम्प ने बिना लाग-लपेट के यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि अब से अमेरिकी सैन्य ताकत का उपयोग दूर-दराज के देशों में लोकतंत्र की स्थापना और राष्ट्र निर्माण जैसे कार्यों के लिए नहीं होगा| बजाए इसके अमेरिका अपने मित्र एवं सहयोगी देशों के साथ मिलकर साझे हितों की रक्षा के लिए कार्य करेगा|
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की भाँति डॉनल्ड ट्रम्प भी अमेरिकी इतिहास के सबसे लम्बे चलने वाले इस युद्ध से सम्मानजनक छुटकारा चाहते हैं| राष्ट्रपति ट्रम्प का यह भी मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति की स्थापना तथा आतंकी खतरे को रोकने में सैन्य शक्ति की निश्चित रूप से जरूरत है लेकिन यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है| अनन्य शांति (लास्टिंग पीस) की स्थापना के लिए सैन्य ताकत का इस तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है जिससे कि राजनीतिक प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिए जरूरी परिस्थितियों का निर्माण हो सके| इस क्रम में, अफ़गानिस्तान में तीन मूलभूत अमेरिकी हितों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता, अमेरिकी लोगों द्वारा दिए गए बलिदान के प्रकाश में, एक सम्मानजनक और चिरस्थाई परिणाम की तलाश है| हालाँकि साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वो अमेरिकी सेनाओं की अफ़गानिस्तान से वापसी को लेकर बहुत उतावले भी नहीं हैं क्योंकि जल्दबाजी में लिए गए इस तरह के फैसले से एक शक्ति-निर्वात (पावर वेक्यूम) बनेगा जिसे आई.एस.आई.एस. और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन जल्दी से भर देंगे| अपनी बात का वजन बढ़ाने के लिए उनहोंने अफ़ग़ानिस्तान की तुलना ईराक से भी की जहाँ अमेरिकी सेनाओं की जल्दबाजी में हुई वापसी के बाद स्थिति काफी बिगड़ गयी थी|
वर्तमान समय में दक्षिण एशिया, विशेषकर अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान, में स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वैश्विक आतंकवादी संगठनों का जो जमावड़ा इन दोनों देशों में देखने को मिलता है, वह शायद ही विश्व के किसी अन्य भाग में मौजूद हो| राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी अपने संबोधन में इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहा कि अमेरिका द्वारा नामित कम से कम २० विदेशी आतंकी संगठन इन दोनों देशों के भीतर सक्रिय हैं| पाकिस्तान को सीधे तौर पर निशाना बनाते हुए उन्होंने स्पष्टतः कहा कि यह देश आतंक, हिंसा और अराजकता के अभिकर्ताओं (एजेंट्स) को सुरक्षित शरणगाह उपलब्ध कराता है|
अमेरिकी हितों और चुनौतियों को रेखांकित करने के पश्चात राष्ट्रपति ट्रम्प ने भविष्य में इन हितों की पूर्ति और चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति पर भी कुछ प्रकाश डाला| ओबामा प्रशासन के विपरीत, अमेरिका की नयी रणनीति समय-आधारित दृष्टिकोण के बजाए एक शर्त-आधारित (कंडीशन बेस्ड) दृष्टिकोण पर केन्द्रित होगी| वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि समय-आधारित दृष्टिकोण अनुत्पादक रहा है इसलिए भविष्य में अमेरिकी हितों के दुश्मनों को हमारी सैन्य योजनाओं का पहले से पता नहीं चलना चाहिए| अतः आगे से आतंकवादियों के विरुद्ध किसी भी तरह की सैन्य-योजना की जानकारी पहले से सार्वजनिक नहीं की जाएगी| इसके अतिरिक्त नई नीति में अमेरिकी शक्ति के सभी अवयवों—कूटनीतिक, आर्थिक, और सैन्य—का समावेश होगा जिससे कि अपेक्षित परिणाम प्राप्त किए जा सकें|
इस नई नीति के अगले दो स्तम्भ पाकिस्तान और भारत से सम्बंधित हैं| जहाँ तक पाकिस्तान तथा उसकी खतरनाक चालों से निपटने का प्रश्न है, अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है पूर्व के विपरीत अमेरिकी हितों के लिए खतरा पैदा करने वाले तालिबान तथा अन्य आतंकी संगठनों को पाकिस्तान द्वारा दी जा रही मदद पर वह शांत नहीं बैठेंगे| पाकिस्तान यदि आतंकियों को पनाह देना जारी रखता है तो उसे बहुत कुछ खोना पड़ेगा| अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ़ कर दिया है कि पहले की भाँति पाकिस्तान को अब लाखों-लाख डॉलर का भुगतान नहीं किया जाएगा|
अमेरिका की नई नीति विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ सामरिक सहयोग को और अधिक बढाने पर न केवल जोर देती है बल्कि इसे अमेरिका की दक्षिण एशियाई रणनीति का एक महत्वपूर्ण भाग भी मानती है| अभी हाल ही में बीते १६ अगस्त को अमेरिका ने भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हिजबुल मुजाहिदीन को विदेशी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया था| इससे पहले इस संगठन के प्रमुख सय्यद सलाहुद्दीन को भी २६ जून को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया था| अपने हालिया संबोधन के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प भारत को अमेरिका का महत्वपूर्ण आर्थिक और सुरक्षा सहयोगी बताते हुए उसके द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के स्थायित्व के लिए किए गए प्रयासों की सराहना भी करते हैं| हालाँकि इसी क्रम में वह यह भी रेखांकित करने से नहीं चूकते कि भारत, अमेरिका के साथ व्यापार के माध्यम से लाखों डॉलर कमाता है और वह चाहते हैं कि भारत अफ़ग़ानिस्तान के मामले में, विशेषकर आर्थिक सहायता और विकास के क्षेत्र में, और अधिक मदद करे|
राष्ट्रपति ट्रम्प की इस नई दक्षिण एशिया नीति और उनके हालिया संबोधन के विश्लेषण से एक बात साफ़ हो जाती है कि आने वाले समय में दक्षिण एशियाई परिदृश्य में अमेरिकी रणनीति और अधिक यथार्थवादी स्वरुप ले सकती है| इसका तात्पर्य यह है कि एक ओर तो समय समय पर जारी विभिन्न वक्तव्यों और उद्घोषणाओं में जोर-शोर से साझे हितों की बात की जाएगी और मित्र देशों एवं सहयोगियों से सामरिक संबंध बढ़ाने की बात कही जाएगी, लेकिन वास्तविक धरातल पर अमेरिकी हितों की पूर्ति पर ही अधिकतर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा| इसकी बानगी ट्रम्प के संबोधन में तब साफ़-साफ़ झलकती है जब वह एक ओर तो अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थायित्व के लिए गंभीर प्रयास करने पर जोर देते हैं, तो दूसरी तरह यह भी कहते हुए पाए जाते हैं अफ़ग़ानिस्तान को अपने हिस्से का सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक बोझ उठाना चाहिए| इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति यह भी साफ़ करते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान को दिया जाने वाला सहयोग कोई कोरा चेक नहीं है, इसकी एक सीमा है|
दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण ताकत होने के नाते भारत जैसे देश को अपने ओर आने वाले अवसरों तथा चुनौतियों के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए| अमेरिका की दक्षिण एशिया नीति में होने वाले परिवर्तन की घोषणा एक अवसर भी है और एक चुनौती भी| इस परिवर्तन की आमद एक ऐसे समय पर हुई है जब एक ओर तो देश सीमापार से संचालित आतंकी गतिविधियों से अपने लोगों और सीमाओं की सुरक्षा करने में लगा हुआ है, तो वहीँ दूसरी तरफ चीन की हठधर्मिता का भी बखूबी जवाब दे रहा है| ऐसे समय में हमारे नीति निर्माताओं को एक सामंजस्य बिठाने की जरूरत है जिससे एक ओर तो हमारे राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हो तथा दूसरी ओर विदेशनीति निर्धारण में हमारी रणनीतिक स्वायत्तता भी बनी रहे|
(साभार: राष्ट्रीय सहारा)
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