Weekly Program on World Affairs

 



भारत की पश्चिम एशिया नीति-डॉ. सलीम अहमद


 


  
स्वतंत्रता के पश्चात, भारत की विदेश नीति का निर्माण, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के चमत्कारी नेतृत्व में हुआ. नेहरु जी ने फलस्तीन-इजराइल संघर्ष में फलस्तीनियों की हिमायत की और यहूदी राज्य से दूरी बनाये रखीं. उनकी मृत्यु के पश्चात, कांग्रेस के नेतृत्व मे बनने वाली सरकारों ने भी इसी नीति का अनुसरण किया. लेकिन जब से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बी.जे.पी सरकार का गठन हुआ तभी से भारत-इजराइल संबंधों में गुणात्मक विकास हो रहा है. साथ ही, दोनों राष्ट्रों की सरकारें धार्मिक रुढ़िवाद से ग्रस्त घोर राष्ट्रवादी हैं, घरेलू चुनौतियां एवं प्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद दोनों देशों के मध्य सामान्य मुद्दें हैं. विचारों का समान होना दोनों राष्ट्रों के संबंधों को मज़बूत आधार प्रदान करता है. ऐसा लगता है कि अब नेहरु युग समाप्त हो चुका है और पी. एम. मोदी के नेतृत्व में नए युग का सूत्रपात हो रहा है. मोदी की इजराइल यात्रा के दौरान, दोनों देशों के मध्य सात क्षेत्रों में समझौते हुए जिनमें मुख्य रूप से अन्तरिक्ष, कृषि, एवं जल प्रबंधन आदि शामिल हैं.

अभी हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा संपन्न की जो कि कई मायनों में महत्वपूर्ण रही. पहली बात तो यह है कि भारत-इजराइल के मध्य राजनयिक संबंधों को आरम्भ हुए २५ वर्ष पूर्ण हो चुके है और यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी राज्य की पहली यात्रा थी. यहूदी राज्य के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्यहूँ ने रेड कारपेट स्वागत करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को “आपका स्वागत है मेरे दोस्त” कह कर संबोधित किया जोकि भारत-इजराइल संबंधों में बढ़ रही प्रगाढ़ता को दर्शाता है. साथ ही, नेतान्याहू ने यह भी कहा  कि “भारत-इजराइल संबंध स्वर्ग में बने हैं”. मज़ेदार बात यह है कि अभी तक भारत की ओर से जितनी भी यहूदी राज्य की आधिकारिक यात्राएँ की गयी  हैं उनमे फलस्तीन का भी दौरा भी शामिल है या फलस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास से भी मुलाकात की गयी है, लेकिन मोदी की इजराइल यात्रा के दौरान, इस बात का खास तौर पर ध्यान रखा गया है कि यह यात्रा सिर्फ और सिर्फ यहूदी राज्य की यात्रा होगी. इसमें फलस्तीन को शामिल नहीं किया गया. पी.एम. मोदी के ठहरने का इन्तेज़ाम किंग डेविड होटल में किया गया था जो कि रामल्लाह से कुछ किलो मीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन भारत-इजराइल सबंधों को ध्यान में रखते हुए रामल्लाह को नज़रंदाज़ कर दिया गया. यह भारत की फलस्तीनी नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है. इससे यह बात ज़ाहिर होती है कि भारत फलस्तीन और इजराइल दोनों देशों को अलग-अलग कर के देख रहा है. साथ ही, भारत ने इस मिथक को भी तोड़ दिया कि यदि भारत इजराइल के साथ संबंधों को बढ़ाता है तो इसका सीधा प्रभाव फलस्तीन के ऊपर पड़ता है या यूँ कहें अगर फलस्तीन के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करता है तो इसका प्रभाव भारत-इसरायल संबंधों के ऊपर पड़ता है. फलतः यह भारत की संतुलित राजनयिक नीति का परिणाम है जिसकी वजह से आज भारत के संबंध दोनों देशों के साथ मज़बूत हो रहे हैं. बल्कि खुद फलस्तीन के राष्ट्र अध्यक्ष ने प्रत्यक्ष रूप से फलस्तीन-इजराइल समस्या के हल करने के लिए भारत को मध्यस्थ की भूमिका निभाने का आग्रह किया है। 

अभी हाल ही में, फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आये जिसका उद्देश्य भारत-फलस्तीन के मध्य संबंधों में फिर से गर्मजोशी लाना था,  मोदी ने फलस्तीन-इजराइल संघर्ष  के जल्दी  और स्थायी हलनिकालने की उम्मीद दिलायी, और कहा कि भारत सार्वभोम, स्वतंत्र, एकजुट एवं व्यवहार्य फलस्तीन की उम्मीद करता है, जो इजराइल के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्वके साथ रह सके. लेकिन पी. एम. मोदी ने “ईस्ट जेरूसलम” को फलस्तीनी राज्य की राजधानी बनाने वाले मुद्दे को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की जोकि फलस्तीन-इजराइल के मध्य महत्वपूर्ण मुद्दा है. साथ ही यह बात गौर करने वाली है कि पी. एम. मोदी ने अपनी इजराइल यात्रा के दौरान फलस्तीनी समस्या को जानबूझकर नज़रंदाज़ किया जोकि भारत की पश्चिम एशिया नीति में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है. आज पश्चिम एशिया के सभी देशों के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं चाहे वह सऊदी अरबिया, ईरान, तुर्की, फलस्तीन या इजराइल हो.

फलस्तीन हमेशा से चाहता है कि भारत फलस्तीन-इजराइल संघर्ष को हल करने के लिए हस्तक्षेप करे, लेकिन भारत ने इजराइल के साथ मेल खा रहे साझ-रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए उचित दूरी बनाये रखी जोकि भारत की परम्परागत विचारधारा के विपरीत है. भारत को अल्प अवधि लाभ के लिए विचारधारा के साथ समझौता नहीं करना चाहिए बल्कि दीर्घकालिक लाभ को केन्द्रित करते हुए विचारधारा का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए. विद्वानों का मानना है कि भारत इजराइल से जो रक्षा संबंधी उपकरण खरीद रहा है उससे यहूदी राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है. यहूदी राज्य की रीढ़ का मज़बूत होना फलस्तीनियों की स्तिथि को कमज़ोर करता है. भारत के लिए ज़रूरी है कि फलस्तीन-इजराइल समस्या का दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करते हुए इजराइल के साथ संबंधो को विकसित करे। भारत का फलस्तीनी मुद्दे को नज़रअंदाज़ करते हुए यहूदी राज्य के साथ संबंधों को बढ़ाना, इजराइल की स्थिति को मजबूती प्रदान करता है. साथ ही, रामल्लाह की यात्रा न करना, भारत की पश्चिम एशिया नीति में बड़े बदलाव का संकेत है जिसके अंतर्गत इसरायली स्थिति को प्राथमिकता पर दर्शाता है.

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