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जब से नरेन्द्र मोदी के चमत्कारी नेतृत्व
में बी.जे.पी सरकार का गठन हुआ तभी से भारत-इजराइल के संबंधों का तेज़ी से बहुआयामी
विकास हो रहा है. गौरतलब है कि दोनों ही देशों की सरकारें घोर राष्ट्रवादी हैं,
विचारों का समान होना दोनों राष्ट्रों के संबंधों को मजबूती प्रदान करता है. आगामी
जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में मोदी इजराइल के आधिकारिक दौरे पर जा रहे हैं जोकि इतिहास
में पहलीबार किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी राज्य की प्रथम यात्रा होगी, इस
दौरे में किसी भी पड़ोसी देश को सम्मिलित नहीं किया गया है. यह सिर्फ इजराइल की आधिकारिक
यात्रा होगी. इस यात्रा के दौरान दोनों “देशों के मध्य
रक्षा, कृषि, शिक्षा, जल सुरक्षा एवं प्रबंधन और सांस्कृतिक क्षेत्रों में समझौते
होने की संभावना है. साथ ही भारतीय सेना के लिए स्पाइक टैंक रोधी मिसाइल एवं
नौसेना के लिए बराक ८ मिसाइल संबंधी समझौता” होने की संभावना है.
भारत और इजराइल के बीच सदियों पुरानें
सांस्कृतिक संबंध हैं. ऐसा माना जाता है कि यहूदी लोग इजराइल को पैतृक भूमि तो
भारत को मातृभूमि मानते हैं. भारत में यहूदी लोंगों का समुदाय निवास करता है और
बहुत से भारतीय लोग यहूदी राज्य में जाकर बस गये हैं जहाँ पर भारतीय संस्कृति को स्पष्ट
रूप से देखा जा सकता है. साथ ही, इजराइल
में लगभग १० प्रतिशत भारतीय छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. विद्वानों का मानना है
कि भारत और इजराइल प्राकृतिक मित्र हैं, दोनों राष्ट्रों की स्थापना द्वितीय विश्व
युद्ध के पश्चात हुई, दोनों ही विश्व के प्रजातान्त्रिक पद्धति अपनाने वाले देश
हैं, दोनों को अपने पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध करना पड़ा, और दोनों ही राष्ट्र घरेलू
चुनौतियों एवं सीमापार से आ रहे आतंकवाद से पीड़ित हैं. भारत-इजराइल के मध्य
कूटनीतिक संबंधों की बुनियाद १९९२ से मानी जाती है. हालाकि भारत ने यहूदी राज्य के
अस्तित्व को १९५० मे ही मान्यता प्रदान कर दी थी. लेकिन विचारधारा मे अंतर और पश्चिमी
एशियाई मुस्लिम राष्ट्रों के साथ घनिष्ठ संबंध होने के कारण दोनों देशों के मध्य संबंध
खुलकर विकसित न हो सके. लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति और विश्व पटल पर हो रहे बदलाव
को ध्यान में रखते हुए भारत और इजराइल ने कूटनीतिक संबंधों को विकसित किया. लेकिन इसका
यह मतलब नहीं कि भारत ने यहूदी राज्य के साथ संबंधों का विकास अन्य अरब देशों की
कीमत पर किया, बल्कि भारत ने एक संतुलित कूटनीति का अनुसरण करते हुए पश्चिम एशिया
के दूसरें अरब राष्ट्रों के साथ संबंधों को भी बनाये रखा और इजराइल के साथ भी. यह
भारत की स्पष्ट संतुलित नीति का परिणाम है कि आज पश्चिम एशिया के सभी देशों के साथ
भारत के घनिष्ठ संबंध हैं चाहे वह सऊदी अरबिया, ईरान, फलस्तीन या इजराइल हो. भारत
ने हमेशा से ही अपने राष्ट्रहितों को सुरक्षित रखते हुए अपने वैदेशिक संबंधों को
विकसित किया. उदाहरण के लिए, भारत ने फलस्तीन-इजराइल मुद्दे पर अपनी स्तिथि स्पष्ट
करते हुए यहूदी राज्य और फलस्तीन दोनों के साथ संबंधों को बनाये रखा, मज़ेदार बात
यह है कि इन राष्ट्रों ने कभी भी भारत को अपनी नीति बदलने के लिए विवश नहीं किया. लेकिन
सन २०१४ में, जब यहूदी राज्य के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHRC) द्वारा
प्रस्ताव लाया गया जिसके अंतर्गत इजराइल के द्वारा फलस्तीनियों के ऊपर गाज़ा संघर्ष
में किये गए युद्ध अपराध (War Crimes) का आरोप लगाया गया था तो उस समय भारत ने
अपनी परंपरागत नीति से पीछे हटते हुए इस प्रस्ताव को समर्थन न देकर इससे पृथक रहा.
नईं दिल्ली का इस प्रस्ताव से पृथक रहना दूसरें पश्चिमी एशियाई देशों लिए स्पष्ट
संकेत था कि भारत अपनी परम्परागत विदेशनीति में बदलाव कर रहा है, उसके लिए राष्ट्रहित
सर्वोपरि है जिनको सुरक्षित रखना भारत की विदेशनीति का कर्तव्य है. भारत की इस
नीति से जहाँ एक ओर फलस्तीन को जोरदार झटका लगा, वहीँ दूसरी ओर भारत-इजराइल
संबंधों को बल मिला. क्योंकि इससे पहले भारत ने सदेव फलस्तीनियों का समर्थन किया. लेकिन
वर्तमान में, पी. एम. मोदी के नेतृत्व में भारत-इजराइल संबंधों को पोषित किया जा
रहा है. परिणाम स्वरुप, भारत और इजराइल दोनों राष्ट्रों की ओर से निरंतर आधिकारिक
यात्राएँ हो रही हैं. अक्टूबर २०१५ में, भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी यहूदी
राज्य की आधिकारिक यात्रा पर गये जोकि दोनों देशों के लिए लाभकारी साबित हुई. इसके
विपरीत, नवम्बर २०१६ में यहूदी राज्य के राष्ट्रपति रयूवें रिवलिन आधिकारिक यात्रा
पर भारत आये. दोनों देशों के मध्य विकसित हुए कूटनीतिक संबंधों को शुरू हुए २५ साल
हो चुके हैं. सन १९९२ से, दोनों राष्ट्रों के मध्य साझा रणनीतिक क्षेत्रों में संबंध
तेज़ी से विकसित हो रहें है. इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से, सैन्य एवं रक्षा, खुफिया,
नौसेना सुरक्षा संबंधित, कृषि क्षेत्र, खाद्य सुरक्षा, जल प्रबंधन, अन्तरिक्ष, साइबर
सुरक्षा, असममित युद्ध (asymmetric warfare), और मेक इन इंडिया मिशन आदि शामिल
हैं. इजराइल भारत को रक्षा सम्बंधित उपकरण बहुत अधिक मात्रा में निर्यात करता है
जिनमे मुख्य रूप से जहाज, रक्षा मिसाइलें, और मानव रहित विमान आदि हैं. भारत और इजराइल
ने संयुक्त रूप से बैरक ८ मिसाइल को विकसित किया है. यह मिसाइल सतह-से-हवा
(surface-to-air) में मार कर सकती है, इसकी मारक छमता लगभग ९० km है. यह मिसाइल
भारत की बाहरी सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत ही उपयोगी है. साथ ही इजराइल ने भारत
के साथ रक्षा संबंधी तकनीकी कला को भी साझा किया है. भविष्य मे, दोनों देश मिलकर शोध
और विकास, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, पर्यटन आदि सम्बंधित क्षेत्रों के लिए कार्य कर
रहें हैं. साथ ही दोनों राष्ट्रों के मध्य लगभग ४.५ बिलियन डालर का व्यापार हो रहा
है. अभी हाल ही में, भारत और इजराइल के मध्य एक बड़ा रक्षा समझौता हुआ जिसके
अंतर्गत भारत इजराइल से ६३ करोड़ डालर में अत्याधुनिक हवाई एवं मिसाइल रक्षा
प्रणाली खरीदेगा जिसको भारत नौसेना के अलग-अलग युद्धपोतों पर तैनात किया जायेगा.
अभी हाल ही में, फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद
अब्बास भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आये जिसका उद्देश्य भारत-फलस्तीन के मध्य
संबंधों में फिर से गर्माहट लाना था, क्योंकि जुलाई महीने में पी. एम. मोदी इजराइल
के दौरे पर जा रहे हैं. पी. एम. मोदी ने फलस्तीन-इजराइल संघर्ष के “जल्दी और
स्थायी हल” निकालने की उम्मीद
दिलायी, और कहा कि “भारत सार्वभोम, स्वतंत्र, एकजुट एवं व्यवहार्य फलस्तीन की उम्मीद करता है, जो इजराइल के साथ
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व” के साथ रह सके. दोनों देशों के बीच सूचना प्रौद्योगिकी, खेल और युवा मामलें, स्वास्थ्य, कृषि, और इलेक्ट्रॉनिक्स
आदि क्षेत्रों में समझौते हुए. गौरतलब है कि फलस्तीन हमेशा से चाहता है कि भारत फलस्तीन-इजराइल
संघर्ष को हल करने के लिए हस्तक्षेप करे, लेकिन भारत ने इजराइल के साथ मेल खा रहे रणनीतिक
हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित विदेशनीति का अनुसरण किया और उचित दूरी बनाये
रखी जोकि भारत की परम्परागत विचारधारा के विपरीत है. भारत को अल्प अवधि लाभ के लिए
विचारधारा के साथ समझौता नहीं करना चाहिए बल्कि दीर्घकालिक लाभ को केन्द्रित करते
हुए विचारधारा का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए.
संक्षेप में कह सकते हैं कि भारत
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यावहारवादी दृष्टिकोण को अपनाकर विदेशी संबंधों का
संचालन कर रहा है जोकि भारत की पश्चिम एशिया नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है. इसी
गुणात्मक बदलाव के कारण, भारत और इजराइल के संबंध बहुत ही तेज़ी से विकसित हो रहें
हैं, इसका श्रेय पी. एम. मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व को जाता है, उनकी आगामी इजराइल
की यात्रा इतिहास के सुनहरे पन्नों पर लिखी जाएगी.
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