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२१वीं शताब्दी के आरम्भ में जिस प्रकार भारत और बांग्लादेश के मध्य मैत्री सम्बन्ध
विकसित हो रहें हैं यह भारत के अन्य पड़ोसी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण
प्रस्तुत करता है. इससे न सिर्फ भारत के पड़ोसी देशों को बल्क़ि पूरे दक्षिण एशिया
के विकास मे बल मिलेगा है. भारत आरम्भ से ही अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुरतापूर्ण
सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है और साथ ही साथ अपने पड़ोसी देशों के विकास मे अपना
योगदान भी करना चाहता है. भारत ने हमेशा से ही दक्षिण एशियाई क्षेत्र मे “बड़े भाई”
(big brother) की भूमिका निभाई है लेकिन भारत के पड़ोसी राज्यों ने सदेव इसे शंका
की दृष्टि से देखा. दूसरी और चीन ने भारत के पड़ोसी राज्यों की इस शंका का कूटनीतिक
लाभ उठाते हुए इन राज्यों के साथ भू-राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित किये.
चीन भारत को चारो तरफ से घेरना चाहता है और इसके लिए भारत के पड़ोसी राज्यों को वित्तीय
और सामरिक सहायता प्रदान कर उनको अपने प्रभाव क्षेत्र मे लेना चाहता है.
चीन-पाकिस्तान सम्बन्ध इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.
ज्ञातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, जिस तरह भारत की विदेशनीति का सफलतापूर्वक
प्रभाव पड़ रहा है और फलतः बहुत ही तेज़ी के साथ भारत विश्व के अन्य शक्तिशाली देशों के साथ
सम्बन्ध स्थापित कर रहा हैं. इसका श्रेय माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के चमत्कारिक नेतृत्व और प्रभावशाली वयक्तित्व को जाता है. आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख में जो
गुणात्मक परिवर्तन आया है उसका प्रत्यक्ष प्रभाव भारत के पड़ोसी देशों पर देखा जा
सकता है. जब से मोदी जी के नेतृत्व मे NDA सरकार आयी है तभी से भारत के पड़ोसी
देशों के साथ संबंधो मे सकारात्मक बदलाव
आया है. हालांकि भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय कूटनीतिक संबंधो की शरुआत दिसम्बर १९७१ से मानी
जाती है और दोनों देशों के मध्य बहुत सी समानताएं हैं जोकि दोनों राष्ट्रों को आपस
मे जोड़ती हैं जैसे कि साझा इतिहास, भाषा और सांस्कृतिक सम्बन्ध, संगीत एवं हिंदी
फिल्में, साहित्य और कला एवं समान विरासत आदि. यह समानताएं २१वीं शताब्दी में भारत
और बांग्लादेश के मध्य मैत्री संबंधों को बहू-पक्षीय संबंधो के रूप में उजागर करती
है. दोनों देशों की भू-राजनैतिक स्थितियां भी एक दूसरें के आपसी संबंधो को विकसित
करने के लिए प्रेरित करती हैं और यह दोनों राष्ट्रों के लिए बहुत ही अच्छा अवसर है
जिसके ज़रिये दोनों राष्ट्र मिलकर एक दूसरें की अर्थव्यवस्थाओं एवं संयोजक संबंधो
को विकसित कर सकते हैं.
अभी हाल ही में बंगलादेश
की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत की यात्रा पर आयी थी जो की कई मायनों में दोनों
देशों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रही. इस यात्रा के दौरान, भारत ने बांग्लादेश को आधारिक
संरचना सम्बंधित परियोजनाओ के लिए अतिरिक्त
४.५ अरब डालर एवं सैन्य उपकरण खरीदने के लिए ५० करोड़ डालर का क़र्ज़ दिया. साथ ही लगभग
२२ समझौतों पर MOU हस्ताक्षर भी किये जिनमे मुख्य रूप से रक्षा क्षेत्र, नाभिकीय
ऊर्जा, साइबर सुरक्षा, मीडिया से सम्बंधित हैं. भारतीय विदेश सचिव एस. जयशंकर के
अनुसार, दोनों देशों के प्रमुखों
ने मिलकर करीब १७ परियोजनाओ को चिन्हित किया है जिनमे पायरा बंदरगाह, चिट्टागोंग बंदरगाह और मोंगला बंदरगाह के उन्नतीकरण, चार पथ सड़कों का निर्माण, एअरपोर्ट उन्नतीकरण, एवं रेल मार्गों को विकसित करना है. यह भारत द्वारा
किसी देश को दिया गया सबसे अधिक अतिरिक्त क़र्ज़ है. जोकि कुल मिलाकर, भारत ने अबतक पिछले ६ वर्षों मे बांग्लादेश को ८ अरब डालर का क़र्ज़ दिया है.
लेकिन तीस्ता नदी जल मुद्दे पर कोई सहमती नहीं बन पायी है क्योंकि यह मुद्दा
भारतीय संविधान के अनुसार राज्य सूची के अंतर्गत आता है और जबतक पश्चिम बंगाल की
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सहमती नहीं मिल जाती तबतक यह मुद्दा हल नहीं होगा. विदित
हो कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की २०११ बांग्लादेश यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी ने तीस्ता नदी समझौते का विरोध किया था जिसके कारण यह मुद्दा अभी तक
हल नहीं हो पाया है लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बंगलादेश की
प्रधानमंत्री शेख हसीना को विश्वास दिलाया है कि जल्द ही तीस्ता मुद्दे को हल कर
लिया जायेगा.
समझौते के दौरान, दोनों देशों के प्रमुखों ने कोलकाता, खुलना और ढाका के मध्य एक बस सेवा चलाने की घोषणा की है. इसके साथ ही एक
नयी यात्री ट्रेन जोकि खुलना से कोलकाता वाया बेनापोले से पेत्रपोले होते हुए भारत
और बांग्लादेश के मध्य चलेगी. इसके अलावा, राधिकापुर और बिरोल के बीच माल गाड़ियों को चलाने के लिए एक रेलवे लिंक
विकसित किया जायेगा. असैन्य नाभिकीय ऊर्जा से सम्बंधित कार्यक्रम, उनकी स्थापना एवं नाभिकीय ऊर्जा की सुरक्षा से सम्बंधित क्षेत्रों मे भारत
बांग्लादेश की सहायता करेगा. भारत ने घोषणा की है कि वह नुमालीगढ़ से पार्बतीपुर के
मध्य एक डीजल पाइपलाइन विकसित करने मे बांग्लादेश को वित्तीय सहायता उपलब्ध
कराएगा. साथ ही, भारतीय कंपनियां
बांग्लादेश के साथ उच्च गति वाले डीजल को उपलब्ध कराने के लिए समझौता करेंगी.
दोनों देशों के राष्ट्र-प्रमुखों के द्वारा शिक्षा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को
बढ़ावा देने के लिए एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए. इसी के साथ एक समझौता
ज्ञापन ढाका विश्वविद्यालय और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी. एस. आई.
आर), एवं राजशाही विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया
इस्लामिया के मध्य किया गया.
उपरोक्त के अतिरिक्त, दोनों देशों के मध्य आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा है
जिससे दोनों ही देश पीड़ित है. बांग्लादेश भारत की आंतरिक और बहरी सुरक्षा के
द्रष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बांग्लादेश की सीमाएं जो की लगभग
४०९६ km लम्बी हैं भारत के तीनों ओर से घिरी हुई है और उत्तर-पूर्व के राज्यों की शान्ति
और सुरक्षा के द्रष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. बांग्लादेश में आतंकवादी गतिविधियाँ
बढती जा रही है और साथ ही अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे कट्टर आतंकवादी संगठन अपनी
पैठ बनाने मे लगे हुए है. विद्वानों का मानना है कि सीमा पार देश बांग्लादेश में
आतंकवादी गतिविधियों के द्वारा अस्थिरता उत्पन्न करना चाहता है और वह समय-समय पर
इन आतंकवादी संगठनों को वित्तीय एवं सामरिक सहायता प्रदान करता है. लेकिन भारतीय
प्रधानमंत्री मोदी जी ने बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा अपनाई गयी आतंकवाद
के विरूद्ध “शून्य-सहिष्णुता” की नीति का जोरदार समर्थन किया और साथ ही भारत का
आतंकवाद के विरूद्ध सहयोग करने का आश्वासन भी दिया.
भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय व्यापार लगभग ६.६ अरब डालर है.
विश्लेषकों का मानना है की भविष्य में दोनों देशों के बीच व्यापार में सकारात्मक वृद्दि
होने की सम्भावना है क्योंकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से बढ़ रही है
और भारत में मोदी जी द्वारा आरंभ किये गए “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम विदेशी निवेश
के लिए अच्छे अवसर उपलब्ध करता है. इस कार्यक्रम के तहत बांग्लादेश भारत मे निवेश
कर सकता है.
संक्षेप मे कह सकते है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली
नेतृत्व के अंतर्गत भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधो का बहुयामी विकास
हो रहा है. २१वीं शताब्दी के आरम्भ में दोनों देशों के मध्य जो मैत्री सम्बन्ध
विकसित हुआ हैं इसका श्रेय दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों को जाता है. जहाँ एक
ओर पी.एम. नरेन्द्र मोदी ने भारत की विदेश नीति को स्फूर्ति प्रदान कर, न सिर्फ
बांग्लादेश के साथ बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के वैदेशिक संबंधो को मज़बूत
किया है, वहीं दूसरी ओर बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पूरे जोश के साथ कदम
से कदम मिलाते हुए दोनों देशों के मध्य विकसित हो रहे मैत्री संबंधों में सराहनीय सहयोग दिया है. नईं
दिल्ली और ढाका के संबंधों में आयी यह स्फूर्ति दोनों राष्ट्र-अध्यक्षों के सकारात्मक
द्रष्टिकोण का स्पष्ट परिणाम है. साथ ही, मज़ेदार बात यह है कि दोनों ही राष्ट्र-अध्यक्ष
एक दूसरें की कमियों को नज़रंदाज़ करते हुए दक्षिण एशिया क्षेत्र मे शान्ति,
सुरक्षा, सम्पनता एवं साझा विकास को लेकर आगे बढ़ रहे है. दोनों देशों के मध्य एक
दूसरें को प्रति सम्मान और विश्वास तेजी से पनप रहा है और यह दोनों राष्ट्रों का
कर्तव्य है कि इसको भविष्य मे बनाये रखे. लेकिन चीन का बांग्लादेश के साथ तेज़ी से बढ़ते हुए सम्बन्ध भारत के लिए समस्या का
विषय है क्योंकि चीन बांग्लादेश की भू-राजनैतिक स्थिति का लाभ उठाकर दक्षिण एशिया
मे भारत की बढ़ती हुई शक्ति को कम करना चाहता है.
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