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भारत की जूझती 'नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी'- डॉ. श्रीश पाठक

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मौजूदा सरकार और हमारी विदेश नीति के कर्ताधर्ताओं ने विश्व मानचित्र पर लगभग हर क्षेत्र में अपना असर बनाये रखा है, पर जैसे ही हम अपने पड़ोस में देखते हैं तो स्थिति जरूर कमजोर दिखाई पड़ती है। हाल ही में विपक्ष और सत्ता दल के कुछ सांसदों से बनी एक परामर्शदात्री संसदीय समिति ने पड़ोसी देशों से भारत के ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ पर और पारस्परिक संबंधों में उभरी चिंताओं पर सत्ता पक्ष से प्रश्न किया । शशि थरूर, डी. राजा, कर्ण सिंह, आनंद शर्मा, सुब्रामनियन स्वामी, सुषमा स्वराज, एम. जे. अकबर एवं एस. जयशंकर और विदेश सचिवालय के अन्य दूसरे सदस्यों ने इसपर विमर्श भी  किया। पड़ोस में चीन सहित दक्षिण एशियाई सभी पड़ोसी देशों से आर्थिक साझेदारी वहीँ धीमी गति से चल रहे हैं और कूटनीतिक संबंध खिंचे हुए हैं। पाकिस्तान से संबंध कभी सामान्य हुए ही नहीं और पाकिस्तान की अपनी अंदरूनी राजनीति का असर भी भारत के लिए कोई कम चिंता की बात नहीं। चीन ने अपनी ‘एक मेखला-एक मार्ग नीति (ओबोर नीति)’ के तहत भारत के लगभग सभी पड़ोसी देशों से अवसंरचना विकास के नाम पर भारी निवेश किया है और हालिया डोकलम विवाद से भी एक दबाव बनाने की कोशिश की। भूटान ने हर मौसम के साथी के तरह भारत का साथ निभाया है। भारत से भूटान की सीमा एक खुली सीमा है और भारत ने भी भूटान के साथ अपना रिश्ता बनाये रखा है । 

कुछ विश्लेषकों की राय में चीन का एक आर्थिक-सांस्कृतिक असर अवश्य भूटान पर भी पड़ने लगा है और 2018 के देश के तीसरे आम चुनाव में नेपाल के हालिया चुनाव की तरह ही यहाँ भी भारत-विरोधी भावनाओं का उभार दिख सकता है, भले ही यह असर उतना प्रभावी न हो  । डोकलम विवाद के बाद भूटान का एक वर्ग यह मानता है कि इसमें भूटान की स्वतंत्र संप्रभु वैदेशिक नीति को थोड़ा नुकसान पहुंचा है।  यह सच है कि इस समय बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार है जिसे भारत के लिए बेहतर कहा जाता है लेकिन एक तो बांग्लादेश भी एक अंदरूनी राजनीतिक संकट से जूझ रहा है जहाँ न्यायपालिका  और कार्यपालिका में तनाव हैं और प्रमुख विपक्षी दल के साथ सत्तापक्ष के संघर्षपूर्ण संबंधों से भी परिस्थितियाँ सामान्य नहीं हैं। इसके अलावा हाल के रोहिंग्या संकट पर भारत का कमोबेश ठंडा रवैया बांग्लादेश को ठीक तो नहीं ही लगा है। नेपाल के नए संविधान की घोषणा के तुरंत बाद ही असंतुष्ट मधेसियों के द्वारा रक्सौल-बीरगंज पॉइंट नाकाबंदी पर भारत का शांत रह जाना जहाँ वाम दलों और आम नेपालियों को खला है और अब वामपंथियों के सत्ता में आने से और उनकी चीन की तरफ तथाकथित झुकाव से भी भारत-नेपाल संबंध नाजुक तो हुए ही हैं। हाल-फ़िलहाल भारत के श्रीलंका से संबंध भी खास चर्चा में नहीं हैं। श्रीलंका ने अभी अपने एक प्रमुख बंदरगाह का स्वामित्व चीन को एक समयसीमा के लिए के लिए सौपा है। मालदीव ने भी चीन से हाल ही में मुक्त व्यापार समझौता किया है। मालदीव के विदेश मंत्री मोहम्मद आसिम के बीते दिनों की गयी भारत यात्रा से आपसी संबंधों को सम्हालने की कोशिश अवश्य की गयी है। चीन ने दक्षिणी चीन सागर और हिन्द महासागर में अंडरवाटर सर्वेलियांस नेटवर्क्स बिछाकर यकीनन जहाँ हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली, भारत को हिन्द महासागर और प्रशांत क्षेत्र के देशों से अपने संबंधों की गंभीर पड़ताल करनी चाहिए। 

एक चिंता की बात यह भी है कि इधर भारत के पड़ोस में अलग अलग कारणों से भारत विरोधी भावनाओं  में इज़ाफा हुआ है। पाकिस्तान के बाद, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में यह देखा जा सकता है। कुछ कारण ऐतिहासिक हैं तो कुछ सम-सामयिक हैं। भारत की भू-राजनीतिक स्थिति अन्य पड़ोसियों के मुकाबले न केवल बड़ी है बल्कि महत्वपूर्ण भी है, जिससे पड़ोसियों में एक स्वाभाविक असुरक्षा पनपने की बात की जाती है । चीन इस स्थिति का अक्सर यह कहते हुए लाभ उठाता है कि उसका दक्षिण एशियाई देशों के साथ संबंध बराबरी पर आधारित हैं। उभरती भारत विरोधी भावनाओं में यकीनन चीन के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह समझना होगा कि भारत विरोधी भावनाओं का उभार कोई एक दिन में उपजा विकास नहीं है।  हाँ; यह अवश्य है कि इसे विकास के आपसी आदान-प्रदान से सम्हाला जा सकता है। पीछे की सरकारों की तरह वर्तमान में भी भारत ने प्रयास किये हैं लेकिन हालिया प्रयास सफल होते नहीं दिख रहे। 

मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह से ही भारत सरकार ने पड़ोसियों से अपने संबंधों को वरीयता देने की मंशा जता दी थी जिसे ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ कहा गया; पर भारत के प्रयास आगे चलकर कमजोर भी हुए और पड़ोसियों से कोई खास सहयोग भी नहीं मिला । चूँकि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते और कोई भी राष्ट्र अपने पड़ोस से संबंधों में बिना सुधार किये सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता; इसलिए दक्षिण एशिया में भी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की तर्ज पर ‘एंगेजिंग नेबर पॉलिसी’ पर काम किया जाना चाहिए। गुजराल मत की मंशा के अनुरूप ही बिना किसी खास प्रतिउत्तर के भी भारत को अपने स्तर से पड़ोसियों से एकतरफा संबंध सुधारने की कोशिश करते रहना चाहिए। अमेरिका के मुनरो डॉक्ट्रिन (1823) से माना जाता है कि उसके विश्व शक्ति बनने की मंशा का श्रीगणेश हुआ था, जिसमें पहली बार कहा गया कि अमेरिकी महाद्वीप के किसी भी देश के हितों पर किया जाने वाला कोई आघात अमेरिका के हितों पर किया गया आघात माना जायेगा। इस डॉक्ट्रिन से यह अवश्य सीखा जा सकता है कि यदि भविष्य में भारत को एक प्रमुख विश्व शक्ति बनना है तो वह पड़ोसियों से संबंध बिना सुधारे संभव ही नहीं है। ध्यान रहे, जब पड़ोसियों से संबंध बेहतर नहीं होते तो किसी भी क्षेत्रीय द्विपक्षीय विवाद में एक अनचाहे तीसरे पक्ष के रूप में बाहरी विश्व शक्तियों के हस्तक्षेप की गुंजायश बनती है। बाहरी विश्व शक्तियाँ, उस क्षेत्र-विशेष में अपनी निर्णायक भूमिका और प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए बहुधा किसी विवाद के निस्तारण में रूचि लेते जो दिखती भी हैं तो निश्चित ही वह उनकी प्राथमिकता में नहीं होता।  हाल ही में उत्तर कोरिया ने जहाँ अमेरिका की आलोचना की वहीँ दक्षिण कोरिया की ओर अपना रुख थोड़ा नरम किया है । 

विश्व राजनीति में यदि कोई राष्ट्र-राज्य अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रखना चाहता है और वह विश्व-शक्तियों की हाथ की कठपुतली नहीं बनना चाहता तो अवश्य ही उसे अपने संबंध पड़ोसियों से मजबूत करते हुए क्षेत्र से बाहर की विश्व-शक्तियों का हस्तक्षेप न्यूनतम करना होगा। कड़वे औपनिवेशिक अतीत के बाद दक्षिण एशिया के देशों के संबंधों में वह कड़वाहट यों घुल गयी कि पारस्परिक संबंध बेहतर रीति से बन ही नहीं पाए, इसलिए जहाँ शीत युद्ध काल में अमेरिका और सोवियत संघ का हस्तक्षेप बना रहा, अब वहीं चीन और अमेरिका का हस्तक्षेप एशिया में बना हुआ है और नवीन शीत युद्ध की संभावनाएं खंगाली जा रही हैं। अब जबकि भारत एक उभरती बेहद महत्वपूर्ण शक्ति है, पड़ोसियों से संबंधों के सुधार की रूपरेखा और पहल उसे ही करनी होगी। इसकी शुरुआत ठिठके पड़े दक्षेस से करनी चाहिए। भारत यदि पड़ोसियों का विश्वास प्राप्त कर सका तो न केवल दक्षिण एशिया एवं हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बल्कि सम्पूर्ण वैश्विक जगत में भारत की स्थिति इतनी मजबूत होगी कि भारत किसी भी विश्वशक्ति के साथ अपने हितों के लिहाज से बारगेन (सौदेबाजी) कर पाने में सक्षम रहेगा। 

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