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इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पहलीबार अपनी छह दिन की आधिकारिक यात्रा के लिए आज भारत आ रहें हैं जोकि कई मायनों में महत्वपूर्ण है. अभी हाल ही में, भारत ने डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा की गयी जेरुसलम घोषणा के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना वोट किया. वोट करने के पहले भारत के पास अन्य दो विकल्प भी मौजूद थे, यदि भारत चाहता तो वह अमेरिका और इजराइल के साथ बढ़ती हुई संबंधों में प्रगाढ़ता को देखते हुए उनके समर्थन में अपना मत दे सकता था या उस समय की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए अनुपस्थित रहना बेहतर विकल्प हो सकता था. जबकि इजराइली नेतृत्व की अगले महीने भारत यात्रा प्रस्तावित थी. लेकिन भारत ने विदेशनीति की स्वतंत्रता और फलस्तीनी मुद्दे पर अपने परम्परागत स्टैंड को बनाये रखते हुए मध्य मार्ग का अनुसरण किया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि भारत को ट्रम्प की इस घोषणा के विरूद्ध नहीं जाना चाहिए था, जिसके लिए भारत की विदेशनीति की खुलकर आलोचना भी हुई. लेकिन मज़ेदार बात यह है कि अमेरिका और इजराइल की ओर से भारत के इस स्टैंड को लेकर कोई भी आलोचनात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई और न ही वैदेशिक संबंधों के स्तर पर कोई ख़ास परिवर्तन हुआ है बल्कि आपसी संबंधों में पहले जैसे ही प्रगाढ़ता बनी हुई है, और अगले महीने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की फलस्तीन यात्रा भी संभावित है.
ज्ञात हो कि गत वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा संपन्न की थी जो कि कई मायनों में अहम् रही. प्रथम तो यह है कि भारत-इजराइल के मध्य राजनयिक संबंधों को आरम्भ हुए २५ वर्ष पूर्ण हो चुके है और यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी राज्य की पहली यात्रा थी. गौरतलब होकि स्वतंत्रता के पश्चात, भारत की विदेश नीति का निर्माण आदर्शवाद की नीव पर पंडित जवाहरलाल नेहरु के चमत्कारी नेतृत्व में हुआ. नेहरु जी ने फलस्तीन-इजराइल संघर्ष में फलस्तीनियों की हिमायत की और यहूदी राज्य से दूरी बनाये रखीं. उनकी मृत्यु के पश्चात, कांग्रेस के नेतृत्व मे बनने वाली सरकारों ने भी इसी नीति का अनुसरण किया. लेकिन जब से नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व में बी.जे.पी सरकार का गठन हुआ तभी से भारत-इजराइल संबंधों में गुणात्मक तेज़ी हुई है.
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की इस भारत यात्रा में लगभग 130 व्यापारिक लोंगों का दल भी साथ आ रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के मध्य आर्थिक संबंधों को और गति प्रदान करना है. दोनों राष्ट्रों के मध्य मुख्य रूप से तकनीकी, कृषि, पर्यटन, जल प्रबंधन, शोध और अनुसन्धान, आतंकवाद एवं सुरक्षा आदि नए क्षेत्रों में समझौते होने की सम्भावना है. साथ ही, दोनों राष्ट्रों के मध्य मुक्त व्यापार समझौता हो ऐसी भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है, और दोनों देशों के मध्य लोंगों में आपसी संपर्क बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया जायेगा.
इस प्रकार, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में, आदर्शवाद और यथार्थवाद दोनों का समन्वय कर एक अनोखी शैली का परिचय दिया है. आज चाहे वह अरब देश हों, ईरान, तुर्की, फलस्तीन या इजराइल भारत के सबके साथ प्रगाढ़ संबंध हैं. एक ओर, जहाँ लगभग 8 मिलियन भारतीय कामगार वर्ग पश्चिम एशिया में है, तथा तेल एवं ऊर्जा संबंधी जरुरतें खाड़ी देशों से पूरी होतीं हैं, वही दूसरी ओर, इसरायली प्रौद्योगिकी हमारी आधारभूत संबंधी जरुरतें पूरा करने के लिए आवश्यक है. भारत के राष्ट्रहित पश्चिम एशिया के देशों के साथ जुड़े हुए हैं जिनको किसी भी हाल में नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है और इजराइल हमारा रणनीतिक साझीदार है. दोनों के ही साथ हमारे प्रगाढ़ वैदेशिक संबंध हों इसी लक्ष्य को साधने के लिए पी. एम. मोदी ने भारतीय विदेशनीति को एक नईं शैली प्रदान की. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रत्येक राष्ट्र का उद्देश्य आर्थिक हितों को बढ़ावा देना है और पी. एम. मोदी के नेतृत्व राजनीतिक हितों के साथ ही साथ आर्थिक हितों को सुरक्षित करने का काम किया जा रहा है. और विद्वानों का मानना है कि भविष्य में ऐसी संभावनाएं हैं जिनसे भारत-इजराइल संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रहेगी.
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