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बदलाव से बेखबर पाकिस्तान - डॉ. आशीष शुक्ल

The Tribune (Pakistan)

पाकिस्तान भारत का एक मात्र ऐसा पड़ोसी है जो बदलती हुई भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक परिस्थितियों के बावजूद खुद को न बदलने पर अड़ा रहता है| अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब वैश्विक आतंकवादी संगठनों को सुरक्षित शरणगाह उपलब्ध कराने के मसले पर उसकी न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई थी बल्कि विश्व की एक मात्र महाशक्ति अमेरिका ने विभिन्न मदों के अंतर्गत उसको दी जाने वाली सैन्य मदद रोकने की घोषणा की थी| गौरतलब है कि वर्ष 2018 के आरम्भ में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरते हुए कहा था कि पाकिस्तान-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अमेरिका और उसके मित्र देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं| भारतीय थल-सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने भी अभी हाल ही में यह स्पष्ट किया था कि यदि पाकिस्तान अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आता और भारतीय सरकार उन्हें सीमा पार करने की छूट देती है तो हमें (भारतीय सेना) को उनकी (पाकिस्तान) नाभिकीय धमकी (न्यूक्लियर ब्लफ) के झूठ का पर्दाफाश करना पड़ेगा| जनरल रावत ने एक सवाल के जवाब में यह भी कहा कि भारत और अमेरिका एक-दूसरे के युद्धशील कमान क्षेत्र (कॉम्बटेंट कमांड) में सैन्य संपर्क अधिकारियों (मिलिटरी लायजन ऑफीसर) की तैनाती के प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं| 

पाकिस्तानी राष्ट्र, उसकी सेना की प्रकृति और भारत के प्रति अपनाई जाने वाली नीतियों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि इन चेतावनियों का उसकी सेहत और उसके व्यवहार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है| यही वजह है कि बीते 13 जनवरी को फिर से पाकिस्तान की तरफ से जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल) का उल्लंघन किया गया जिसमे सीमा सुरक्षा बल के एक जवान की मौत हो गयी और एक आम नागरिक गंभीर रूप से घायल हो गया| वहीँ भारतीय सेना की जवाबी कार्यवाही में सात पाकिस्तानी सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा और चार सैनिक गंभीर रूप से जख्मी हो गए| पाकिस्तान की तरफ से हाल ही में शुरू की गयी गोलीबारी का यह सिलसिला जल्द ख़त्म होता नहीं दिख रहा है और विलंबतम सूचना के अनुसार 16 जनवरी को फिर से जम्मू-कश्मीर के अरनिया उपखण्ड में आठ भारतीय सैन्य चौकियों को निशाना बनाया गया है|

भारत-पाकिस्तान की सीमा पर इस तरह की गोलाबारी न तो नई बात है और न ही यह कोई छिट-पुट या एकाकी (आइसोलेटेड) घटना है| यह वास्तव में पाकिस्तान की एक सोची-समझी और जाँची-परखी रणनीति का हिस्सा है| इसे समझने के लिए हमें पहले पाकिस्तान की कार्यप्रणाली को समझाना आवश्यक है| भारत के विपरीत पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश न होकर एक वर्ण-संकर धर्मतंत्र (हायब्रिड थियोक्रेसी) है जहाँ सैन्य संस्थान ने देश के आधारभूत ढाँचे को इस तरह से भेदकर रखा है कि देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा समेत उसकी विदेश नीति पर भी सेना का ही एकाधिकार हो गया है| पाकिस्तानी सेना और उसके आरंभिक नीति नियंताओं ने शुरू से ही भारत को पाकिस्तान की आम जनता के सामने एक अस्तित्व-सम्बन्धी खतरे (एक्जिस्टेंशियल थ्रेट) के रूप में प्रस्तुत किया है और अपनी राष्ट्रीय कहानी (नेशनल नैरेटिव) का ताना-बाना उसके इर्द-गिर्द बुना है| यही वजह है कि पाकिस्तान की सेना या उसके नीति-निर्माताओं के सामने जब कभी भी कोई बड़ी चुनौती पेश आती है तो वह किसी न किसी रूप में उसका सम्बन्ध भारत से स्थापित करने का प्रयास करते हैं| यदि वो अपने इस प्रयास में सफल होते हैं तो पाकिस्तान के लोगों का उन्हें भरपूर सहयोग मिलने लगता है जो उन्हें आगे की रणनीति बनाने और उसका अनुपालन करने में सहयोग करता है| यही कारण है कि आंतरिक सुरक्षा के मामले में अपनी ही नीतियों के कारण बुरी तरह फेल रहने पर भी पाकिस्तान इस असफलता का ठीकरा अक्सर भारत के सर पर ही फोड़ने की कोशिश करता रहता है|

वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां एक बार फिर पाकिस्तान के अनुकूल प्रतीत नहीं हो रही हैं| एक ओर तो पाकिस्तानी राष्ट्र आन्तरिक सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों से जूझ रहा है तो दूसरी ओर उसका सबसे महत्वपूर्ण साथी अमेरिका न केवल उससे दूर जाता दिखाई दे रहा है बल्कि बदली हुई भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक अवस्थितियों में उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में भी उभर रहा है| गौरतलब है कि पाकिस्तान द्वारा पाले-पोसे आतंकवाद ने 2001 के बाद से उसके स्वयं की सुरक्षा के लिए भी परेशानियाँ पैदा करना शुरू कर दिया है| पाकिस्तानी सेना द्वारा चलायी गयी विभिन्न सैन्य कार्यवाहियों के बावजूद पाकिस्तान के अन्दर होने वाली आतंकवादी घटनाएँ अभी तक रुकने का नाम नहीं ले रही हैं जिससे एक ओर तो आंतरिक अशांति बढ़ रही है तो दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं| इन सबके बीच अमेरिका द्वारा लगातार पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर आड़े हाथों लेना और उसके द्वारा दी जा रही सैन्य मदद को रोक देने जैसे फैसले ने समस्या को और अधिक जटिल बना दिया है| इसके अतिरिक्त पाकिस्तान को सबसे अधिक तो यह बात भी खाए जा रही है कि उसका अब तक का सबसे अच्छा मित्र अमेरिका अब भारत के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है जो पाकिस्तानी सेना को कत्तई मंजूर नहीं है|

इन सबके बीच चीन द्वारा पाकिस्तान को लगभग हर एक क्षेत्र में, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर, लगातार मिल रहा सहयोग उसके लिए राहत की बात है| पिछले काफी समय से चीन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में पाकिस्तान का हर तरह से बचाव कर रहा है| लेकिन पाकिस्तान के नीति-निर्माता और उसकी सेना इस बात को बखूबी जानते हैं कि चीन और अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दिए जा रहे सहयोग में बड़ा फर्क है| यही वजह है कि लाख परेशानियों के बाद भी पाकिस्तान, अमेरिका के साथ दूरी नहीं चाहता है और परदे के पीछे से रिश्तों को पाकिस्तान-अमेरिका रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है| अभी हाल ही में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा की अमेरिकी सेन्ट्रल कमांड के जनरल जोसेफ एल. वोटेल से टेलीफोन पर बात-चीत हुई जिसमें उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अमेरिका की सुरक्षा चिंताओं की जानकारी है और वह इस क्षेत्र में पहले से ही काम कर रहे हैं|

उपरोक्त विश्लेषण के आलोक में सीमा पर होने वाले गोलीबारी को आसानी से समझा जा सकता है| इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खुद को अलग-थलग होता हुआ पाता है या उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ता है तो वह अपना तुरुप का पत्ता निकाल कर अपने ऊपर दबाव कम करने की कोशिश करता है| भारत से होने वाला किसी भी तरह का आभासी या वास्तविक टकराव पाकिस्तान के लिए वह तुरुप का पत्ता है जिसका उपयोग वहां के शासनाध्यक्ष काफी पहले से करते आ रहे हैं|

(साभार: राष्ट्रीय सहारा)

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