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55 वर्ष के पश्चात, एक बार फिर भारत और चीन के मध्य डोकलाम पठार को लेकर गतिरोध उत्पन्न हो गया है. डोकलाम पठार भूटान की सीमा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह एक भू-रणनीतिक त्रि-संधि क्षेत्र है, जहाँ पर भारत, भूटान और चीन तीनों देशों की सीमाएं एक ही बिंदू पर आकर मिलती हैं. चीन इस भू-रणनीतिक क्षेत्र में एक सड़क का निर्माण करना चाहता है जिससे वह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सके. भारत की भू-रणनीतिक सुरक्षा की दृष्टि से, इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति एक बढ़ा खतरा उत्पन्न कर सकती है. चिकन-नैक के नाम से मशहूर सिलीगुड़ी गलियारा यहाँ से मात्र 21 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है जोकि उत्तर-पूर्व के राज्यों को जोड़ने का काम करता है. इसको सुरक्षित बनायें रखना भारत के लिए बहुत ही अहम् मुद्दा है. साथ ही, भारत और भूटान के मध्य आरम्भ से ही घनिष्ठ संबंध हैं, भूटान ने जब भारत से सहायता करने के लिए कहा तो भारत ने एक क्षण की भी देरी न करते हुए अपनी सेना की टुकड़ी को डोकलाम क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भेजा. भारत की इस सैन्य कार्यवाही से दोनों देशों के हितों की सुरक्षा होती है. लेकिन दोनों राष्ट्रों के मध्य गतिरोध उत्पन्न होने के कारण, दोनों देशों की सैनिक टुकड़ियाँ डोकलाम क्षेत्र में लगभग 150 मीटर की दूरी पर एक दूसरे के आमने-सामने खड़ी हुई हैं, यदि समय रहते इसका कूटनीतिक समाधान नहीं निकला गया तो जिस तरह के हालत बन रहें हैं उससे प्रतीत होता है कि भारत-चीन के मध्य कभी युद्ध छिड़ सकता है. मजेदार बात यह है कि डोकलाम विवाद भूटान और चीन के मध्य का मुद्दा है न कि भारत और चीन के मध्य का, लेकिन भारत अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से संवेदनशील होकर इस विवाद में भूटान की ओर से भाग ले रहा है. साथ ही, भारत का कहना है कि भारत-चीन के मध्य सीमा रेखा बटांग ला पर है, जबकि चीन का तर्क है कि यह सीमा रेखा माउंट गिम्पोची पर है जोकि यह दक्षिण की ओर तीन मील की दूरी पर है, अगर चीन सही है, तो यह डोकालम पठार तक पहुंच हासिल कर लेगा. फलतः यहाँ से चीनी सेना बहुत आसानी से चिकन-नैक क्षेत्र को अपने कब्ज़े में कर सकती है. ज्ञातव्य है कि भारत-चीन के मध्य लगभग ३५०० किलो मीटर की सीमा रेखा है जिसमें से ज्यादातर सीमा क्षेत्रों पर दोनों देशों के मध्य विवाद बना हुआ है.
उधर चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, कर्नल वू कि़आन, ने मजबूती से कहा है कि “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को हिलाने के बजाय पहाड़ को हिलाना आसान है. हम दृढ़ता से आग्रह करते हैं कि भारत अपनी गलती को सुधारने के लिए व्यावहारिक कदम उठाये और चीन को उकसाना बंद करे. सीमा रेखा की शांति और सुरक्षा बनाये रखने के लिए, चीन और भारत को संयुक्त रूप से मिलकर आगे आना चाहिए. चीन भारत को याद दिलाना चाहता है कि भारत के तर्क अनुसार, भविष्य में पाकिस्तान सरकार के अनुरोध पर तीसरे देश की सेना भारत और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र में प्रवेश कर सकती है”. चीनी सरकार ने दृढ़ता से कहा है कि कोई भी वार्ता आरम्भ करने से पहले भारत को अपने सभी सैनिकों को डोकलाम क्षेत्र से वापस बुलाना होगा. चीनी सैनिक अभी तक धैर्य बनाये हुए हैं लेकिन सदेव नहीं बनाये रखेंगे. दूसरी ओर, भारत के रक्षा मंत्री, अरुण जेटली ने भी दृढ़ता से जवाब देते हुए कहा कि "2017 का भारत 1962 के भारत से अलग है". इसी तरह, भारतीय सेना के सेनाप्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी भारत-चीन युद्ध की संभावना को स्वीकार करते हुए कहा कि "भारतीय सेना पूरी तरह से ढाई मोर्चा युद्ध के लिए तैयार है. साथ ही, भारत की विदेशमंत्री, श्रीमती सुषमा स्वराज का कहना है कि डोकलाम पठार में चीन की एक तरफा कार्यवाही भारत की सीमा सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करती है, और इसको सुरक्षित करना भारत के लिए राष्ट्रीय सम्मान की बात है. दोनों ही राष्ट्र अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर पूरी तरह से अडिग हैं और कोई भी राष्ट्र पीछे हटना नहीं चाहता है. यदि दोनों ही राष्ट्र ऐसे ही अपनी-अपनी स्थिति पर बने रहते हैं तो सैन्य लड़ाई होना अनिवार्य हो जायेगा और दोनों देशों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
अभी हाल ही में, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग 50 सैनिकों ने उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करते हुए भारतीय क्षेत्र में 1 किमी अन्दर तक आ गए, जिनको को शीघ्र ही भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा रोक लिया गया. चीन भारत को उकसाने के लिए नए-नए अवसर खोज़ रहा है जिससे दोनों देशों के मध्य युद्ध आरम्भ हो जाये. ज्ञात है कि एशिया के दोनों बड़े देशों की आबादी लगभग २.७ अरब है और दोनों ही राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार हैं यदि इनके बीच युद्ध छिड़ जाता है तो निश्चित रूप से विनाश बहुत बड़े पैमाने पर होगा, और दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विद्वानों का मत है कि चीन भारत से युद्ध नहीं करेंगा, गतिरोध ऐसे ही बना रहेगा, यह सिर्फ चीन की राजनीतिक लफ्फाजी है, क्योंकि चीन अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को धूमिल नहीं करेगा. दूसरी ओर, भारत कभी भी युद्ध की पहल अपनी तरफ से नहीं करेगा, लेकिन राष्ट्रीय हितों सुरक्षित करना भारत की विदेशनीति का परमकर्तव्य है.
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